कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥ शिव चालीसा - जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला. धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥ दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत https://shivchalisas.com